इस दुनिया में कई ऐसी चीजें है, जिसे हम अनुभव करते है, लेकिन हमारे पास इसके लिए कोई स्पष्टीकरण नही है। हम इस अनुभव को एक छठा इंद्रिय या अंतर्ज्ञान कह सकते है। क्या आपने कभी किसी निश्चित घटना या व्यक्ति के बारे में ऐसा महसूस किया है, जो बाद में सच हुआ हो ?
इस दुनिया में कई घटनाएं है, जिन्हें हम समझ नही पाये या समझा नही पायें। दिव्यदृष्टि या अन्य अतिसंवेदी धारणायें इस प्रकार के उदाहरण है । ये भावनाऐं हमेशा जताने या समझाने योग्य नही हो सकते है, लेकिन हम उन्हें जानते है, क्योंकि हम उन्हें अच्छे से अनुभव कर सकते है।
यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा और हमारे लिए स्मारक है, जो हमें केवल पूरी दुनिया के बहुत बडे़ हिस्से का छोटा सा भाग बनाता है।
दिव्यदृष्टि क्या है ?
क्या आपने कभी, कुछ होने के पहले ही, उस चीज के बारे में कुछ ऐसा महसूस किया है ? कुछ लोग है, जो कथित तौर पर चीजों को समझने या महसूस करने की क्षमता रखते है, मैं कहती हुं, इन व्यक्तियों के पास दिव्यदृष्टि है।
यह फ्रांसिसी शब्द से लिया गया है और इसका शाब्दिक अर्थ ‘‘स्पष्ट दृष्टि‘‘ है। इसका मतलब है कि ये व्यक्ति अपने संवेदी अंगों के उपयोग के बिना ही भविष्य देख सकते है। हालांकि भविष्य को देखने की वजह से अक्सर इन्हें ज्योतिषी, भविष्यवक्ताओं या भूत-प्रेत से जोड़ा जाता है।
फिर भी यह हम सभी के लिए कोई असमान्य बात नही है, कि उनके पास किसी तरह के अति संवेदी धारणाओं का अनुभव है।
एक दिव्यदृष्टा कौन हो सकता है ?
हम यह कह सकते है कि दिव्यदृष्टा के कई स्तर है, जो कि अनजाने के साथ संबंध और खुद के विकास पर निर्भर करता है।
कुछ लोग विभिन्न दृश्य उत्तेजनाओं के माध्यम से अधिक स्वतंत्र रुप से सहज जानकारी प्राप्त कर सकते है। मैं उन्हें अनोखा कहती हु , जो कि उनके खुद के कर्मो के द्वारा दिया गया उपहार है। वे कभी-कभी उन्हें देख, सुन और महसूस भी कर सकते है।
फिर दूसरे लोग है, जो मन की ऑंखों से दृश्य चित्र या प्रतिलिपि प्राप्त कर सकते है। इसका मतलब है कि कोई वास्तविक शारीरिक उत्तेजना नही है, जो संवेदना का कारण बनती है, लेकिन फिर भी कुछ चित्र, रंग और आकार/प्रतिरुप का पता लग सकता है।
हमारे लिए यह कल्पना करना आसान है। जब हम अपनी आंॅखें बंद करते है तो हम कभी-कभी चित्रों , रंगों या प्रतिरुप की चमक देख सकते है, भले ही हमारी ऑंखे बंद क्यों ना हो। यह हमारी खुद की निष्क्रिय दिव्यदृष्टि क्षमता हो सकती है।
कोई होगा, जो अपने मन और शरीर के साथ एक रिश्ता बनाया हो, इन चित्रों के साथ उसे जोड़ सकता है और एक सार्थक प्रतिरुप को समझ सकता है।
दिव्यदृष्टा की दृष्टि उतनी नाटकीय नही होती है, जैसा कि वे अक्सर इसे फिल्मों या साहित्य में चित्रित करते है। सामान्यतः यह बहुत ही तीव्र और अचेतन रुप में प्रकट हो सकते है। दिव्यदृष्टि की कुंजी अपने मन , शरीर और आत्मा का दुनिया के साथ एक मजबूत सहज ज्ञान युक्त बंधन बनाना है।
दुनिया में हमारी धारणाओं के द्वारा हमारी वास्तविकताओं को आकार दिया गया है। प्रत्येक व्यक्ति दुनिया को अलग ढंग से देखता है। कुछ अपनी शारीरिक समझ से हटकर भी अनुभव कर सकते है।
यह पहचानना भी महत्वपूर्ण है कि हम अभी तक पूरी तरह से खुद की जतिलताओं और उस दुनिया को समझ नही पाये है, जिन्हें हम देख नही सकते है, लेकिन सबसे पहले हमें खुलकर अपने स्वयं के साथ मजबूत संबंध बनाना चाहिए और खुद को इसके साथ प्रयोग करने की अनुमति देनी चाहिए।
अपने अंतर्ज्ञान से कैसे जुड़े और उसे बढ़ाये और अपने सीमित विश्वास से खुद को बाहर लाकर अपने आंतरिक संतुलन को ढुढ़ने के लिए कलदान की कार्यशाला, वार्ता और कोचिंग से जुड़ें।
कलदान के बारे में अधिक जानने के लिए उसकी बेबसाइट
Leave a Reply